㇐㇣㇐
महकती हुई और महकाती हुई,
तू चलती है मादकता छलकाती हुई.
तब्बसुम के तराने लिए होठों पर,
बहारों को बुलाती है बहकाती हुई.
खूबसूरत सी दो झीलें हैं चांद पर,
सुन्दर सी मेरी तस्वीर बनाती हुई.
मेरी जान है तू मेरा जहान भी है,
हक़ जताए मेरी बातें इतराती हुई.
अब और क्या कहूं...
हंसती खेलती खिलखिलाती हुई,
अच्छी लगती है तू मुस्कुराती हुई.
㇐㇣㇐
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Jai sir aap great ho
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteजय सर री जय हो। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteशुभेच्छु - कुलदीप भाटी
जय सर री जय हो। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteशुभेच्छु - कुलदीप भाटी
बहुत बहुत धन्यवाद भाटी सा, आपका स्नेह यूं ही बना रहे...
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