वैसे देखा जाए तो मेरी ये कविता कोई ग़ज़ल नहीं है, महज़ एक तुकबंदी है. फिर भी मैंने इसका शीर्षक 'The Ghazal' रखा है, और यही इसकी खासीयत है. तो पेश है 'The Ghazal'-
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ना जाने उसकी आँखों में ऐसा क्या मिल गया,
हर किसी को अपनी ग़ज़ल का मतला मिल गया।
रात हुई और वो जगमगाती आंखें दीया बन गई,
रात हुई और वो जगमगाती आंखें दीया बन गई,
अनजान किसी शायर के लिए काफ़िया बन गई।
किसी ने उन मतवाली आंखों को कह दिया सीप,
किसी ने उन मतवाली आंखों को कह दिया सीप,
और शान से अपनी शायरी का कर लिया रदीफ़।
मासूमियत है, अदाएं हैं, हर मिसरे का नूर हैं वो,
मासूमियत है, अदाएं हैं, हर मिसरे का नूर हैं वो,
जिसमें उनकी रौनक हो, ग़ज़ल बड़ी मशहूर है वो।
जब वो चले गए, हुश्न के बाज़ार में मंदी हो गई,
जब वो चले गए, हुश्न के बाज़ार में मंदी हो गई,
चलो मकता में राजू! अपनी भी तुकबंदी हो गई।
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*Image Source: Pexels
Kya bat hai boss...Bht umda
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteशुक्रिया mithilesh जी...
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