हम ये कैसी भूल कर बैठे हैं,
जिन्दा अपने उसूल कर बैठे हैं.
मांगी है जो उनसे मोहब्बत,
पत्थर को फूल कर बैठे हैं.
क्या जरुरत थी हमें बुलाने की,
खर्चा वो भी फिजूल कर बैठे हैं.
जो उसने पेश किया प्यार से,
सौदा वो भी कबूल कर बैठे हैं.
हम भी कितने नासमझ ठहरे,
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