सुबकता रहा चांद रातभर,
सिसकती रही हवाएं रातभर,
करहाते रहे पहाड़ रातभर,
चीखती रही दिशाएं रातभर.
शायद कोई सपना था.
मगर सुबह मैनें देखा...
शबनम बिखरी हुई थी हर पात पर,
ज़रूर आसमान रोया होगा रातभर.
सिसकती रही हवाएं रातभर,
करहाते रहे पहाड़ रातभर,
चीखती रही दिशाएं रातभर.
शायद कोई सपना था.
मगर सुबह मैनें देखा...
शबनम बिखरी हुई थी हर पात पर,
ज़रूर आसमान रोया होगा रातभर.
㇐㇣㇐
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badhiya
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deletebahut khoob ..
ReplyDelete...जी शुक्रिया!
Deletebahut khoob ..
ReplyDelete☺
DeleteBahut badiya
ReplyDelete☺
DeleteBahut badiya
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार...
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