A poem dedicated to my parents: उंगली पकड़ाकर चलाते मुझे...


㇐㇣㇐

उंगली पकड़ाकर चलाते मुझे,
जब कभी अंधेरे डराते मुझे.

ये है चांद और वो रहे सितारे,
हर बार प्यार से बतलाते मुझे.

मां  की गोद में सुकून मिलता है,
जब कोमल हाथ सहलाते मुझे.

बापू की आंखें डराती हैं मगर,
हाथ के तकिए पर सुलाते मुझे.

उनकी दुआओं से सलामत हैं ये,
मेरे नन्हें कदम समझाते मुझे.

सरल शब्दों में कहता हूं बात,
ग़ज़ल के सलीके नहीं आते मुझे.


㇐㇣㇐

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*Image by Mabel Amber from Pixabay

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