खुली आंख में ख्वाब पड़ा है.
चांद सा वो मुखड़ा दिखलाए,
दिल अपना बेताब पड़ा है.
चश्म-ए-यार में डूब जाओेगे,
बहुत बड़ा गिरदाब पड़ा है.
आओ मिलकर मौसम बनाएं,
कई दिनों से ख़राब पड़ा है.
जीवन-खाते की बड़ी बही में,
पाई-पाई का हिसाब पड़ा है.
आइए राजू! राम-राम करते हैं-
सुरमई शाम के सिरहाने पर,
नया-नया माहताब पड़ा है.
㇐㇣㇐
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बोहोत खूब नेहरा जी
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद...
DeleteSuperbbb
ReplyDeleteशुक्रिया...
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