A Revolutionary Poem: आज ख़िलाफ़त के अल्फ़ाज़ उठे हैं...


㇐㇣㇐

जो ये कदम आज उठे हैं,
लगता है ज़मीर जाग उठे हैं.

जिनके हाथों में होता था खंजर,
आज वही खंजर के ख़िलाफ़ उठे हैं.

तूफ़ान भी झुका है उनके सामने,
करने सामना जो सब साथ उठे हैं.

आज वो मंजर नजर आ ही गया,
बिना जंजीरों के ये हाथ उठे हैं.

रहम की भीख मांगी थी आज तक,
आज ख़िलाफ़त के अल्फ़ाज़ उठे हैं.


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Comments

  1. रहम की भीख मांगी थी आज तक,
    आज ख़िलाफ़त के अल्फ़ाज़ उठे हैं.
    बहुत अच्छा!

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